
बिहार की राजनीति में अब यूपी का तड़का लग चुका है! जैसे-जैसे 2025 विधानसभा चुनाव नज़दीक आ रहे हैं, सियासी मंच पर दो चेहरे सबसे ज़्यादा चर्चा में हैं — योगी आदित्यनाथ और अखिलेश यादव।
एक तरफ योगी का “बुलडोजर हिंदुत्व”, दूसरी तरफ अखिलेश की “PDA (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक)” पॉलिटिक्स।
दोनों नेताओं की मौजूदगी बिहार की राजनीति को उत्तर प्रदेश के रंग में रंग रही है।
योगी आदित्यनाथ: बीजेपी के सुपरस्टार प्रचारक
गोरखपुर के महंत से मुख्यमंत्री बने योगी आदित्यनाथ अब बिहार में बीजेपी के सबसे बड़े वोट-कैचर बन चुके हैं।
बीजेपी ने योगी के लिए 24 से ज़्यादा मेगा रैलियों की प्लानिंग की है — और वो भी बिहार के सीमावर्ती इलाकों जैसे सीवान, गोपालगंज, चंपारण और दरभंगा में।
बीजेपी सूत्रों का दावा है — “योगी की रैलियों के लिए भीड़ जुटाना किसी और नेता से आसान है।”
उनकी बुलडोजर छवि, सख्त प्रशासनिक शैली, और हिंदू एकता का नारा बिहार के ग्रामीण वोटरों के बीच गूंज बन चुका है।
अखिलेश यादव: महागठबंधन के नए चेहरा
विपक्षी मोर्चे पर समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव बिहार में महागठबंधन के अभियान का चेहरा बनकर उभरे हैं।
उनका पूरा फोकस — “सामाजिक न्याय + युवाओं की राजनीति” पर है।
2 से 5 नवंबर के बीच अखिलेश बिहार में 17 रैलियों को संबोधित करेंगे। उनका ‘PDA’ नारा — पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक — बिहार के कई जिलों में गूंज रहा है।
साझी सीमाएं, साझा सियासत — यूपी बनाम बिहार का कनेक्शन
दोनों राज्यों की सीमाएं, जातीय समीकरण और सांस्कृतिक जुड़ाव इस सियासी साझेदारी को और मज़बूत बनाते हैं। जहां योगी का प्रभाव उत्तर और पश्चिम बिहार में दिख रहा है, वहीं अखिलेश का असर पूर्वी और मिथिलांचल में बढ़ रहा है।
राजनीतिक माहौल अब साफ़ है — बिहार का चुनाव = यूपी की सियासत का एक्सटेंशन!
अब बिहार की गलियों में दो नारे टकरा रहे हैं — “बुलडोजर चलेगा” बनाम “PDA चलेगा”!
मतलब साफ है — बिहार का चुनाव सिर्फ विकास की बात नहीं, बल्कि यूपी के दो मॉडलों का मुकाबला है।

सीनियर जर्नलिस्ट आलोक सिंह कहते हैं, योगी आदित्यनाथ की कठोर कानून-व्यवस्था और हिंदुत्व की पहचान बिहार के सीमावर्ती जिलों में गहराई से असर डाल रही है। गोरखपुर से दरभंगा तक, उनका नाम ही जोश भर देता है। बीजेपी के अंदर भी माना जा रहा है कि योगी की जोशीली भाषा और no-nonsense इमेज उन मतदाताओं को आकर्षित करती है जो “मजबूत नेता” की तलाश में हैं।
मंजेश कहते हैं,योगी का संदेश स्पष्ट है — “धर्म और विकास साथ-साथ।” उनकी हर रैली में दो बातें बार-बार गूंजती हैं, केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं की उपलब्धियां। हिंदुत्व के एजेंडे के साथ राजनीतिक एकजुटता।
आनंद कुमार कहते हैं, अखिलेश यादव ने अपने “PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक)” फॉर्मूले को बिहार में उतारकर राजनीतिक विमर्श बदल दिया है। उनकी रणनीति बहुत सीधी है — सामाजिक न्याय + युवाओं की आकांक्षा = विपक्ष का नया वोट बैंक।
बिहार में इन तीनों वर्गों की जनसंख्या 70% से अधिक है, और यही महागठबंधन का कोर वोट बेस बनता जा रहा है।
आनंद आगे कहते हैं, अखिलेश और तेजस्वी यादव की जोड़ी विपक्ष की “नवजवान पावर” का प्रतीक बन रही है। दोनों एक ही नरेटिव पर काम कर रहे हैं — “नई पीढ़ी का बिहार, नए रोजगार का वादा।”
इनकी जोड़ी सोशल मीडिया पर भी युवाओं के बीच ट्रेंडी कॉम्बो बन गई है।
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